हालिया खबर - चीन की कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में जुलाई में पिछले साल के मुकाबले 0.3% की गिरावट !
चीन की अर्थ्यवस्था को हजार वोल्ट का झटका लगा है...गरीब देशों की मदद कर उसे अपने जाल में फंसाने वाले इस देश की हालत खस्ताहाल हो चुकी है। चीन की अर्थव्यवस्था अब डिफ्लेशन के दायरे में गिर गई है। देश का एक्सपोर्ट लगातार तीसरे महीने गिरा है जुलाई में चीन की इकॉनरमी डिफ्लेशन में चली गई है। चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में जुलाई में पिछले साल के मुकाबले 0.3 परसेंट की गिरावट रही।
Economy Collapse : चीन की अर्थव्यवस्था में डिफ्लेशन का दौर शुरू हो गया है...
ये स्थिति तब बनती है जब सामान के दाम लगातार घटने शुरू हो जाते हैं। आपके दिमाग में यही आएगा कि सामान के दाम कम होना तो अच्छी बात है, लेकिन ऐसा नहीं है, हर बात की एक सीमा है। अर्थव्यवस्था को लेकर भी ऐसा ही है। जब सामानों की कीमत सामान्य तौर पर घटे -बढ़े तो ठीक है, इसका फायदा इकॉनमी को होता है, लेकिन अगर दाम बहुत तेजी से बढ़ने या घटने लगें तो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को इसका नुकसान होता है। चीन में ऐसा ही कुछ हो रहा है। ▪️दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन में जुलाई में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI और प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स PPI में बड़ी गिरावट आई है। सीपीआई पिछले साल के मुकाबले 0.3 फीसदी तक गिर गया। वहीं PPI यानी प्रोडक्शन प्राइस इंडेक्स एक साल पहले की तुलना में 4.4 प्रतिशत कम हो गया।
CPI और PPI में अंतर -
CPI मतलब कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स। यानी किसी सामान या सर्विस के लिए आप जो पैसे चुकाते हैं वो सीपीआई इंडेक्स बताता है। वहीं PPI यानी प्रोडक्शन प्राइस इंडेक्स, जो फैक्ट्री से निकलते समय सामानों के दाम या फिर किसी सामान का फैक्ट्र रेट का डिटेल इस इंडेक्स बताता है। चीन के पीपीआई में गिरावट आई है, इसका मतलब फैक्ट्रियों के मुनाफे में कमी आई है। इसे थोड़ा और आसानी से समझते हैं। आमतौर पर फैक्ट्रियां अपना फायदा जोड़कर फैक्ट्री वाला रेट तय करती है। इसमे उनका मुनाफा भी जुड़ा रहता है। पीपीआई घटने का मतलब कंपनियों के फायदे में कटौती। मुनाफा घटने से कंपनियां अपना कर्ज नहीं चुका पा रही है। कंपनियां दिवालिया हालत में पहुंच चुकी है। इसका असर देश की इकोनॉमी पर पड़ता है।
रियल एस्टेट की हालत खराब :
चीन का रियल एस्टेट ड्ब रहा है। वहां की रियल एस्टेट कंपनियों पर दोहरी मार पड़ रही है। प्रोजेक्ट तैयार है. लेकिन मांग नहीं होने की वजह से फ्लैट घर बिक नहीं रहे है। साल 2022 में चीन के रियल एस्टेट की ग्रोथ 26.8 फीसदी तक घट गई थी। चीन में रियल एस्टेट की हालात ये है कि एक फ्लैट पर दूसरा फ्लैट फ्री है, फिर भी घर खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं। घर नहीं बिकने से कंपनियां नुकसान में जा रही है। कंपनियां कर्ज नहीं चुका पा रही है और जिसकी वजह से वो दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है। चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी कंट्री गार्डन मुश्किल दौर से गुजर रह है। कंपनी के शेयर 16 फीसदी तक गिेर गए। कंपनी बंद होने के कगार पर पहंच गई है। ऐसी ही हालत चीन की रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांड की हो गईी ये दोनों चीन की बड़ी रियल एस्टेट कंपनियां है। चीन की अर्थव्यवस्था में रियल एस्टेट का योगदान 30 से 33 फीसदी तक का है। अब अंदाजा लगा लीजिए कि अगर ये दोनों कंनी डुबती है तो चीन की इकॉनमी पर क्या असर होने वाला है।
Export में भारी गिरावट -
चीन की अर्थव्यवस्था में सिर्फ रियल एस्टेट की झटका नहीं दे रहा, बल्कि आयात-निर्यात का भी बुरा हाल है।
बीते कुछ महीने से चीन का एक्सपो्ट-इंपोर्ट लगातार घट रहा है। कोरोना के बाद से ही चीन के नियात में सालाना आधार पर 14.5 फीसदी कमी आई है। निर्यात किसी भे देश के लिए रीढ़ की हड़डी की तरह होता है। ऐसे में निर्यात में कमी आने से चीन मुश्किल में है।
निर्यात घटने से चीन के खजाने पर असर पड़ने लगा है। निर्यात ही नहीं चीन के आयात में जुलाई में 12.4 फीसदी गिरा है। आयात घटने का मतलब है कि घरेलू मांग में कमी आना। चीन काफी हृद तक एक्सपोर्ट पर निर्भर है। लेकिन इसमें कमी आई है। अमेरिका और यूरोप में मंदी का खतरा और महंगाई बढ़ने से दनियाभर में चीन के सामान की डिमांड कम हो रही है। जून में देश के एक्सपोर्ट में लगातार दूसरे महीने गिरावट आई हैं।
विदेशी कंपनियों तलाश रही विकल्प! -
कोविड के दौरान चीन ने तमाम पाबंदियां लगाई और इन पाबंदियों ने चीन की इकॉनमी की कमर तोड़ दी चीन की सरकार निजी कंपनियों के कारोबार में दखल देती रही है, जो कंपनियों को रास नहीं आई। सरकार की दखल और सरकार की पाबंदियों ने कंपनियों का मुड बिगाड़ दिया और असर ये हुआ की कंपनियां चीन का साथ छोड़ रही है। विदेशी कंपनियां चीन को छोड़कर दुसरे देशों का रूख कर रही है।
बेरोजगारी चमर पर पहुंचीं -
एशियन डेवलपमेंट बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन में 10 में से 6 लोगों के पास ही नौकरी है। 16 से 24 साल के बेरोजगारों की संख्या 21.3% बढ़कर 1 करोड़ 20 लाख पर पहुंच गई है। चीन में युवा बेरोजगारी दर पिलले 4 वर्षोंमें दोगुनी हो गई है। यह वह समय था जब जीरो कोविड पॉलिसी के चलते आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई, जिससे कंपनियां नई भर्तियां करने में हिचकिचाईी इसके अलावा सरकार की सख्ती ने आॅनलाइन एजुकेशन, टेक्नोलॉजी और रियल एस्टेट जैसी किसी समय एक्टिव रहने वाली इंडस्ट्रीज को कम कर दिया है। चीन की इकॉनमी ने भी उच्च वेतन वाली वाइट कॉलर जॉब्स पैदा नहीं की हैं। इससे नौकरियों में कंपटीशन तेजी से बढ़ा है।
डिफ्लेशन के कारण :
Covid - करीब तीन साल से चीन ने कोरोना से निपटने के लिए सख्त पाबंदी लगा रखी थी। इससे कंज्यूमर स्पेंडिंग में गिरावट आई। 2022 के अंत में जब पाबंदियां हटाई गई तो लाखों लोगों ने रेस्टोरेंट्स और शॉपिंग मॉल्स का रुख किया और छुट्टियां मनाने चले गए लेकिन यह जोश कुछ ही दिन में ठंडा पड़ गया। रिकवरी पटरी से उतर गई और लेबर मार्केट दबाव में आ गया। निजी कंपनियों के बीच सरकार की दखल ने काम और बिगाड़ दिया।
चीन-अमेरिका तनाव - चीन और अमेरिका के बीच बढ़ रहे तनाव के कारण भी बीजिंग को नुकसान उठाना पड़ रहा है। अमेरिका के अधिकारी चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए काम कर रहे हैं। अमेरिका ने चीन को सेमीकंडक्टर की सप्लाई पर तरह-तरह की बंदिशें लगाई हैं। साथ ही वह अपने मित्र देशों को भी ऐसा करने के लिए कह रहा है। यूरोप के कई देशों ने भी चीन पर अपनी निर्भता घटाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।
▪️अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन की अर्थ्यवस्था को लेकर भविष्यवाणी करते हुए कहा कि चाइना की इकोनॉमी एक चालू बम जैसी है, जिसमें कभी भी धमाका हो सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन की धीमी आर्थिक विकास दर का हवाला देकर ये बात कही। कोविड के बाद से चीन की अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव - एक्सपर्ट स्ट्रेलियाई वित्तीय सेवा फर्म मैक्वेरी के हांगकांग में मौजूद चीन के मुख्य अर्थशास्त्री लैरी हू के मुताबिक, "चीन में आई मंदी निश्चित रूप से परे विश्व की अर्थव्यवस्था पर असर डालने वाली है। क्योंकि चीन अब दुनिया में नंबर 1 कमोडिटी उपभोक्ता है। इसका प्रभाव बहुत बड़ा होने वाला है।"
चीन वैश्चिक आर्थिक विकास का अकेले 40 फीसदी हिस्सेदार बीसीए रिसर्च के हालिया शोध के मुताबिक, पिछले दशक में चीन वैश्चिक आर्थिक विकास का अकेले 40 फीसदी से ज्यादा का भागीदार रहा है, जबकि अमेरिका की हिस्सेदारी इसमें महज 22 फीसदी है और यूरोपीय 20 देशों की हिस्सेदारी सिर्फ 9 फीसदी है।
चीनी के पास गिरती अर्थव्यवस्था से निपटने के सीमित विकल्प :
चीन की गिरती अर्थव्यवस्था की वजह से चिंता और बढ़ने वाली है क्योंकि चीनी अधिकारियों के पास अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करने के सीमित विकल्प हैं। दरअसल, चीन के बढ़ते कर्ज का अनुमान राष्ट्रीय उत्पादन का 282 फीसदी हो गया है, जो अमेरिका से भी ज्यादा है। चीन की सरकार ने उपभोक्ताओं को खर्च करने और व्यवसायों के लिए देश में निवेश के लिए व्यय कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की है। लेकिन इसकी रुपरेखा अस्प्ट है, जबकि चीन की स्थानीय सरकारों के बीच यह धारणा बन रही है कि सरकारें बिल में फंस जाएंगी, क्योंकि स्थानीय सरकारें ऋण संकट को लेकर चिंता में हैं। उन्होंने सड़कों, पुलों और औद्योगिक पार्कों के निर्माण के वित्तपोषण के लिए सालों तक आक्रामक रूप से पैसे उधार लिए हैं।
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